आज मुझसे लौट रही हो
तुम प्रिये सकुशल जाना।
चित विचलीत है क्यू तुम्हारा
अपना चांद अभी बाकी है
जो खत तुमको भेजे नहीं थे
वो खत पढ़ने अभी बाकी है
एक दो घड़ी तुम रुक पाओ तो
अन्तिम गीत तुम्हे है सुनाना
आज मुझसे लौट रही हो....
अब तक मैंने सारा जीवन
बस साथ तुम्हारे देखा है
सपनो में भी बिछड़े नहीं तुम
क्या किस्मत की लेखा है
मुझसे ऐसी विनती करो ना
ऐसी घडी में भी मुस्काना
आज मुझसे लौट रही हो..
विग्रह से हो शंकोचीत क्या
प्रेम में इतना ही बल था
तुमने राधा कृष्ण पढ़े हैं
प्रेम क्या उनका भी चंचल था
तो ये समर तो जारी निरंतर
अगले जन्म फिर मिलने आना
आज मुझसे लौट रही हो...
एक वादा करें हम इस जीवन को
याद परस्पर आते रहेंगे
एक वो तिथि जब हम तुम मिले थे
उत्सव उसका मानते रहेंगे
ये ही घड़ी है अन्तिम बस अब
जी भर मुझको देख के जाना
आज मुझसे लौट रही हो ...